पुरातात्विक महत्व/ सतना जिले का भरहुत स्तूप क्यों हैं खास ? जाने हमारे साथ

◆ भरहुत क्यों हैं खास


◆ बौद्ध स्तूप और कलाकृतियों के लिए प्रसिद्ध हैं भरहुत


◆ कहा हैं भरहुत 



युवा काफिला, भोपाल- 


भरहुत भारत के मध्य प्रदेश  के सतना जिले में स्थित हैं यह स्थान बौद्धस्तुप और कलाकृतियों के लिए प्रसिहद्ध हैं यह स्तूप  पुष्यमित्र शुंग द्वारा संभवत:185 ईसा पूर्व के बाद निर्मित किया गया था भरहुत का श्री कनिघम ने सर्वप्रथम 1873 ई , में इस स्थल का पता लगाया था । कहते है भरहुर स्तूप अपने समय के समाज का दर्पण कहा जा सकता हैं
 स्तूप सम्भवतः अशोक द्वारा तीसरी शताब्दी ईसापूर्व निर्मित किया गया था। 


यह चित्र सम्राट अशोक का, इसका कारण हाथ में राज दंड और सम्राट अशोक के हाथ में 24 घंटे राजदंड रहता था। अगर कोई गलती करे तो उसे राजदंड दिया जाता था। अर्थात राजधर्म....भरहुत स्तूप


निर्माण


इसका व्यास 67 फुट 8.5 इंज था पहले इतना था। पर वर्तमान में अब इतना नहीं रहा अब तो सिर्फ 10 फुट लंबा 6 फुट ऊंचा ही इसका अवशिष्ट है बचा हुआ है


इसकी वेदिका (boundary) का निर्माण मौर्य काल में अशोक ने ईटे गारे से करवाया था इसके चारों दिशाओं में तोरण द्वार है जिस पर अर्धचंद्र बना हुआ है और बहुत सारी आकृतियों का चित्रों का उल्लेख मिलता है जिससे हमें मौर्य काल के और बौद्ध धर्म के संदर्भ में बहुत कुछ ज्ञात होता है बौद्ध धर्म से संबंधित भगवान गौतम बुद्ध के पूर्व जन्म के जातक कथा से संबंधित चित्रों का उल्लेख मिलता है जिसमें से एक चित्र में या दिखाया जाता है की एक स्त्री के पेट में आकाश से हाथी प्रवेश कर रहा है इससे मायादेवी सपना और और क्रांति कहां गया है।

         चित्र : भहरुत स्तुप के पीछे वाली पहाडी


चित्र : भरहुत स्तुप की पहाडी पर यह अवशेष पाये गए हैं



चित्र : भरहुत स्तुप के पीछे जो पहाडी है, वहां ASI केयर टेकर ने कहा कि पहाडी पर बौद्ध अवशेष है किन्तु इन अवशेषो का भरहुत स्तुप से संबंध नही है। फिर भी लोग यह अवशेष देखने जाते हैं परंतु ASI वहां लोगों वहां लोगों के जाने के लिए सुगम रास्ता नहीं बना रहा । यह मार्ग अत्यंत खतनाक है।



उपरोक्त सभी अवशेष कलकत्ता संग्रहालय में संरक्षित हैं।



भरहुत के पत्थर इस प्रकार के हैं ।



कलकत्ता संग्रहालय- रेलिंग भरहुत स्तूप की



चित्र : महारानी महामाया का स्वप्न



चित्र : भरहुत के कला का प्रभाव अमरावती स्तुपा पर हैं। यह चक्र है इसमें 64 तिलिया है और यह सम्पूर्ण धम्म है।



चित्र: भरहुत स्तुप तुषित देव लोक से धरती पर आगमन। ऐसी ही सीढ़ियों को सबरीमाला मंदिर में भी देखा जा सकता हैं।



 चित्र:महाकापी जातक, बोधिसत्व सिद्धार्थ का जन्म एक बंदर की योवनी में हवा था वे बनारस में बहती गंगा के पास एक स्थान पर रहते थे और आम के पेड़ के फल खाते थे। सिद्धार्थ बोधिसत्व और बनारस के राजा ब्रह्मदत्त।



चित्र : बुद्ध के चरण 


 



                             तुलना 



चित्र: त्रिकोण, बुद्ध, धम्म और संघ के भाव दर्शाते है। इस दृश्य में सात हाथियों और एक महान तीन-सिर वाले  नाग को दिखाया गया है, जिसमें दो शेर एक साथ हैं, जो प्राणियों के प्रति समर्पण दिखाते हैं। इसलिये
3 को अपशुकन रुप दिया गया।


जैसे तीन तिगड़ा क़ाम बिगाड़ा जेसे मुहावरे ।



चित्र: बुद्ध की माता महामाया। इसे चंद्रगुप्त द्वितीय ने बना दिया गजलक्ष्मी और सिक्के पर भी उकेरा। चंद्रगुप्त द्वितीय बुद्धिज्म और विरोधी दोनों तबलो को बजाता था।



 चित्र: राजमुद्रा इसकी कला इजिप्त के कलाओं से मिलती है।



चकवाकेन नाग राजा (राज) लिखा है। 



चित्र: अनाथपिंडक बैल गाडी पर सोना लाकर जेतवन में बिछाते हुए भरहुत स्तूप कलाकृति।


 



चित्र: यहां लिखा है कि यह मुचिलि नाग राज का दिया हुआ दान है।
फिर मुचिलि साँप कैसे हो गया? साँप दान देता है क्या? इमारतें बनवाता है क्या?
मुचिलि नागवंशी राजा थे, जिनको मुचलिंद नाम से साँप बना दिया गया है।
इस कारण बुद्ध का इतिहास अलौकिक और अविश्वसनीय हो गया है।
राजा मुचिलि नागराज का इतिहास खोजे जाने की जरूरत है और यह इतिहास मगध में मिलेगा।



गौतम बुद्ध का जमाना था। तब स्वतंत्र पशु - चिकित्सालय नहीं था।


तत्समय के मशहूर चिकित्सक जीवक थे। राजगीर में उनका चिकित्सालय था।


अब भरहुत स्तूप पर उकेरे गए जीवक के अस्पताल का दृश्य देखिए। ( चित्र 1)


चिकित्सालय में औषधियाँ सिकहर ( छींका ) पर टँगी हुई हैं। जीवक पेट का इलाज कर रहे हैं। संबंधित औषधियाँ सिलबट्टे से पीसी जा रही हैं।



चिकित्सालय में बीमार पशु भी हैं। कराहते बीमार पशुओं का अंकन बड़ा मार्मिक है।


फिर सम्राट अशोक का जमाना आया। सम्राट अशोक ने पशु चिकित्सालय को मनुष्यों के चिकित्सालय से अलग किए।


दूसरे शिलालेख में लिखवाए कि मनुष्य चिकित्सा और पशु चिकित्सा मैंने दो चिकित्साओं को अलग-अलग स्थापित किए।


लाल घेरे में प्राकृत भाषा और धम्म लिपि में लिखा है -- मनुस चिकीछा च पसु चिकीछा। ( चित्र 2 )


भारत के इतिहास में स्वतंत्र पशु चिकित्सालय खोलने का श्रेय सम्राट अशोक को है।