तू प्रयत्न कर
यूँ मुश्किलों से तू न डर, प्रयत्न कर प्रयत्न कर
तू कदमो को न रुकने दे, स्वयं को तू न थकने दे
प्रयत्न करके हारा जो, तो शिकस्त भी एक शस्त्र है
एक पग भी न बढ़ाया जो, तो ये जिंदगी शिकस्त है
अड़चनों की धूप में, तू कोशिशो की छाव बन
यूँ मुश्किलों से तू न डर, प्रयत्न कर प्रयत्न कर।।
आरंभ गर न बन सके, स्वयं का तू विहान बन
तू भाग्य को न दोष दे, स्वयं का तू विधान बन
यूँ दूसरो की जीत से स्वयं को तू न कम समझ
स्वयं को तू ये सिद्ध कर तू लक्ष्य से क्यूँ दूर है
यूँ मुश्किलों से तू न डर, प्रयत्न कर प्रयत्न कर।।
ना रौशनी की राह तक, स्वयं की तू मशाल बन
अब ध्येय के इस युद्ध में, स्वयं की ही तू ढाल बन
तू सूर्य गर ना पा सके, स्वयं का आसमान बन
तू धैर्य की उड़ान भर, तू सब्र रख तू सब्र रख
यूँ मुश्किलों से तू न डर, प्रयत्न कर प्रयत्न कर।।
कोशिशो की राह पे स्वयं को तू भटकने दे
तू मंजिलो को पाएगा, कदम न डगमगाने दे
तू हौसलों की सीप में, बुलंदियों की मोती बन
यूँ मुश्किलों से तू न डर, प्रयत्न कर प्रयत्न कर।।
✍️कवि परिचय
डॉ. राजा दूर्वे
निदेशक
एम.सी.आई बैतूल
मध्यप्रदेश