◆ कला, साहित्य और नाटक थे बाबा साहेब की पहली पसंद
◆ समता सैनिक दल के भीम सैनिक थे वामनदादा कर्डक
युवा काफिला,भोपाल-
भारत अर्थात इतिहास का जम्बूदीप जिसे लोग सोने की चिड़िया के नाम से जानते हैं। प्रारंभ से ही सिंधु घाटी की सभ्यता मानवतादी रही है। अभी चार हजार साल पूर्व में ही तो आर्यो ने भारत पर आक्रमण कर के वर्ण के आधार पर व्यवस्थाओं का निर्माण किया। इन व्यवस्थाओं पर महाकारुणिक बुध्द, संत कबीर, गुरू नानक, गुरू नामदेव, गुरू तुकाराम, गुरू गाडगेबाबा ने सामाजिक आंदोलन किया। बाद में महात्मा फुले, छ.शाहू महाराज, डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर ने जन-आंदोलन किया। डॉ.बाबासाहब के आंदोलन में अनेक कवि और गायकों ने योगदान दिया है। इनमें से वामनदादा कर्डक जी ने बाबासाहब के आंदोलन को गीत-गायन द्वारा पूरे भारत भर फैलाया।
वामनदादा कर्डक का जन्म
वामनदादा कर्डक का जन्म 15 अगस्त 1922 मे नासिक जिले के सिन्नर तहसील में देषवंडी गांव में हुआ।
उनके पिताजी का नाम तबाजी,
माता का नाम सईबाई,
बडे भाई का नाम सदाशिव,
बहन का नाम सावित्री था।
इनके घर खेती-बाड़ी थीं। खेती की हालत बिगड़ने पर उनकी माँ को लकडीयों के लट्ठे बेचने पड़ते। उनके पिताजी बैलों का व्यापार करते थे। वामनदादा की शादी अनुसुईया से हुयी। उनको मीरा नाम की लडकी भी हुई। लेकीन माँ और बेटी आर्थिक हालत खराब होने के कारण संसार छोड़ गई। मज़बूरन वामनदादा ने शांताबाई से दूसरी शादी की। कुछ समय पश्चात वामनदादा उनकी माताजी के साथ मुंबई में मजदूरी करने आये। शिवडी के बीडीडी में किराया के घर में रहते । उन्होने कारखानों में मील श्रमिक का कार्य किया। जब मिल श्रमिक से मन भर गया तब कोयले के भंडारण का काम किया। बाद में उन्हे टाटा कंपनी में नौकरी की। यह समय समता सैनिक दल का था। बाबा साहेब द्वारा स्थापित समता सैनिक दल को मजबूत जानकर वामनदादा कर्डक ने समता सैनिक दल में कार्य करना सुनिश्चित किया। एक बार उन्हे एक आदमी ने खत पढने को कहा, लेकिन परिवार की गरीबी के कारण वह पढ़-लिख नहीं पाए थे। इसका उन्हे गहरा दुःख हुआ। उन्होने देहलवी नाम के अध्यापक से पढना-लिखना शुरू कर दिया। बाद में उनका पढना लिखना बढ़ गया। प्रारंभ में दादा सिनेमा में कलाकार बनना चाहते थे। उन्हे मिनर्व्हा फिल्म कंपनी में एक्स्ट्रा कलाकार का काम मिल गया। वे उस समय कारदार तथा रणजित स्टुडियों मे जाते थे। 1943 में उन्होने सर्वप्रथम डॉ.बाबासाहब आंबेडकर जी से मुलाकात की। उनके भाषण का दादा पर बहुत असर हुआ। दादा समता सैनिक दल के एक सैनिक होने के नाते हिंदी-मराठी साहित्य पढ़ा। उस समय महाराष्ट्र में नासिक के कालाराम मंदिर प्रवेश का सत्याग्रह चल रहा था। 1927 मे डॉ.बाबासाहब आंबेडकरजी ने महाड़ के चवदार तालाब के पानी के लिए सत्याग्रह शुरू किया ही था। हजारो की तादाद में बाबा साहब जी के आंदोलन में शामिल हुए।
गायन पार्टी की स्थापना
शुरूआती दौर में महाराष्ट्र मे पेशवाओं के जमाने में जलसे चलते थे। लेकीन बाद में महात्मा ज्योतिबा फुले के सत्यशोधक आंदोलन के लोगों ने सामाजिक परिवर्तन के जलसे चलाए। बाद में सभी गायक और कलाकार बाबासाहब के आंदोलन मे सामाजिक परिवर्तन के जंग मे शामिल हो गये। शुरूआती दौर में मुंबई में शाहीर घेंगडे बाबासाहब पर शाहीरी गीत गाते थे। उनका एक गीत मराठी में था। उसका मतलब था के, ‘‘महार का एक बच्चा बहोत होशियार, लंडन से आया बॅरिस्टर बनकर’’ यह गीत बाबासाहब को बहुत पसंद था। उस समय भीमराव कर्डक तथा केरूबा गायकवाड (अकोला) जैसे शाहीर थे। तब वामनदादा ने गायन पार्टी की स्थापना की थी।
उस समय डॉ.बाबासाहब आंबेडकरजी ने 1927 मे समता सैनिक दल स्थापन किया था तथा 1936 में स्वतंत्र मजदूर पार्टी की स्थापना की। बाद में 1942 मे नागपूर में शेड्यूल कास्ट फेडरेशन की स्थापना की। उस समय 1933-35 में नागपूर कामठी के प्रथम स्वतंत्र पार्टी के विधायक बाबू हरदास इन्होने सर्वप्रथम जयभिम का नारा दिया। 1943 मे बहुचर्चित फिल्म किस्मत में गाना था ‘‘दुर हटो ए दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है।’’ दादाने उस समय गीत लिखा था, ‘‘दूर हटो ये कॉंग्रेस वालो फेडरेशन हमारा है’’ यह गीत उन दिनो बाबासाहब के आंदोलन में बहोत प्रसिध्द हुआ। दादा की कोई संतान नही थी। दादा कहते थे मुझे बाबासाहब से प्रेरणा मिली और वह कहते थे मुझ जैसे गुंगे को जुबान मिली। बाद में दादा पुरे भारत में बाबासाहब के आंदोलन में गित लिखते रहे और गाते रहे. उन्होने कहा था भीम तेरे जन्म से हमारे करोड़ो परिवारों का उध्दार हुआ।
1952 के लोकसभा के चुनाव में डॉ.बाबासाहब आंबेडकरजी मुंबई से चुनाव में उम्मीद्वार थे। उस समय हजारों कवि गायक तथा कार्यकर्ताओं ने बाबासाहब का आंदोलन उत्साह के साथ चलाया। 1956 में उन्होंने नागपूर में धम्म दिक्षा ली ।
उस समय डॉ.बाबासाहब आंबेडकर नें अंग्रेज सरकार को निवेदन पत्र देकर छात्रों को विदेश पढ़ने भेजा जिनमें बैरिस्टर खोब्रागडे ने आगे चलकर समाज उत्थान का कार्य किया।1956 में जब बाबासाहब आंबेडकर ने नागपूर में लाखो लोगों के साथ बौध्द धम्म अपनाया।
उस समय वामनदादाने गीत लिखा था, ‘वामन इस धरतीपर ऐसा हुआ ही नही, ओर पाँच लाख लोग बुध्द को शरण गये नही’। वामनदादा कहते है आजादी का मतलब हमे समझने दो, ओर दो वक्त का खाना हमे मिलने दो। दादा आगे गीत मे कहते है, मैदान मे आकर बेभान होकर दंगा मत करो, और इंसान के बेटे होकर इंसान के दुश्मन मत बनो. आगे वह गीत में कहते है महिलाओं के मुक्ती के लिए आये महात्मा फुले ओर लडकियों की पढाई हो गयी खुली। आगे पढाई के बारे मे दादा एक गीत में कहते है, तुम्हे पढाई की इच्छा हो, ओर तुम इधर-मत भटको ऐसा बच्चों को कहते हे। दादा दुसरे गीत में कहते है ‘मुझे गुस्सा नही आता यही मेरा गुनाह है’। दादा एक गीत मे ऐसा कहते है की, ‘भीम अगर तूम्हारे विचारों के पाँच लोग रहते तो उनके तलवार की धार अलग ही रहती’। वामनदादा छ.शिवाजी महाराज के बारे मे कहते है की, ‘शिवजी के राज में नही थी कुछ कमी, ओर खुशी से रहते थे हिन्दु और मुसलमान’ ऐसे महान भीमकवी का 15 मई 2004 को निधन हुआ। वामनदादा ने कोई भी संपत्ती जमा नही की। ऐसा उनका त्याग था। उनके त्याग और कार्य को अभिवादन।