◆ आज हैं डॉ आंबेडकर द्वारा स्थापित मिलिंद कॉलेज स्थापना दिवस
◆ बाबा साहेब द्वारा स्थापित पीपुल्स एजुकेशन सोसायटी के माध्यम से हुई थीं मिलिंद कॉलेज की स्थापना
युवा काफिला, भोपाल-
लम्बे समय के संघर्ष का परिणाम था
शिक्षा के प्रति सम्मान था
तर्कशील पीढ़ी का नवनिर्माण था
जिसको बनाने में फावड़ा भी बाबा साहेब आंबेडकर ने चलाया था।
बौद्धिकता की ईमानदारी को समर्पित "मिलिंद कॉलेज"
खुद्दारी का यह भवन भवन था जिसका नाम मिलिंद कॉलेज था।
20 मई 1951 आज के दिन डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने औरंगाबाद में मिलिंद कॉलेज की स्थापना की। बाबा साहेब शिक्षा के बड़े हिमायती थे। बाबा साहेब ने बहुत ही कठिन परिस्थितियों में उच्च शिक्षा प्राप्त की थी और शिक्षा के महत्त्व को जाना था और इसलिए वे चाहते थे कि उनके लोग अधिक से अधिक शिक्षित हों।
अपने समाज की उन्नति के बाबा साहेब डॉ आंबेडकर ने कहा- शिक्षित बनो - संघर्ष करो - संगठित रहो । सामाजिक उन्नति के इस महावाक्य में बाबासाहब डॉ आंबेडकर ने 'शिक्षा' को प्रथम स्थान दिया ।
पीपुल्स एजुकेशन सोसायटी - 1945 में उन्होंने इसके लिए 'पीपुल्स एजुकेशन सोसाइटी' की स्थापना कर मुंबई में 'सिद्धार्थ महाविद्यालय' और औरंगाबाद में 'मिलिंद महाविद्यालय' का निर्माण प्रारंभ किया।
सिद्धार्थ कॉलेज समूह-
बाबासाहब आंबेडकर ने बम्बई में 'मेकवा' और 'अलबर्ट' नाम की दो इमारतें खरीदी और उनके क्रमश: 'बुद्ध भवन' और 'आनंद भवन' नाम रखे। इन्हीं में 'सिद्धार्थ कॉलेज समूह' का सञ्चालन किया गया जिसके अंतर्गत आज मुम्बई में सिद्धार्थ कॉलेज ऑफ़ आर्ट्स एंड साइंस, सिद्धार्थ कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स एंड इकनॉमिक्स, सिद्धार्थ कॉलेज ऑफ़ लॉ, सिद्धार्थ कॉलेज ऑफ़ जर्नलिस्म, सिद्धार्थ इंस्टीट्यूट ऑफ़ कॉमर्स, सिद्धार्थ नाईट स्कूल चल रहे हैं।
मिलिंद कॉलेज समूह-
बाबा साहेब आंबेडकर ने औरंगाबाद में अपने हाथों से फावड़ा चला कर मिलिंद कॉलेज समूह स्थापित किया था । आज मिलिंद कॉलेज समूह में - मिलिंद कॉलेज ऑफ़ आर्ट्स, मिलिंद कॉलेज ऑफ़ साइंस, मिलिंद मल्टी-पर्पज है स्कूल चल रहे हैं। इसके आलावा 'पीपुल्स एजुकेशन सोसायटी' से सम्बद्ध अन्यत्र 'डॉ बाबासाहब अम्बेडकर कॉलेज ऑफ़ आर्ट्स, साइंस एंड कॉमर्स महाड़', 'डॉ बाबासाहब अम्बेडकर कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स बडाला', 'डॉ बाबासाहब अम्बेडकर कॉलेज ऑफ़ लॉ औरंगाबाद', 'डॉ बाबासाहब अम्बेडकर कॉलेज ऑफ़ आर्ट्स एंड कॉमर्स औरंगाबाद' चल रहे हैं।
(वही, पृ 119 )।
शिलान्यास
डॉ आंबेडकर ने 1 सितंबर 1957 को भारत के राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद के हाथों मिलिंद महाविद्यालय का शिलान्यास करवाया।
बाबा साहेब का विधार्थियों को संदेश
प्रज्ञा, शील,करुणा, विद्या तथा मैत्री इन पंच तत्वानुसार हर एक विद्यार्थी को अपना चरित्र बनाना चाहिए-
दिनांक 12 दिसंबर 1955 को औरंगाबाद ( महाराष्ट्र ) के मिलिंद कालेज के बोधि मंडल ने एक सभा का आयोजन किया था, इस सभा का मार्गदर्शन करने के लिए बाबा साहेब आंम्बेडकर को आमंत्रित किया गया । दिनांक 7 दिसंबर 1955 को शंकरराव देव का भाषण हुआ था। उस भाषण में देव ने कहा था कि - "कालेज को केवल मिलिंद नाम देने से काम नहीं चलेगा क्रोध को अक्रोध से जीतने वाले बुद्ध के विचार को मनोसात कर उनका पुरस्कार करना चाहिए तभी मिलिद नाम साकार होगा ।"
इस अवसर पर बाबासाहेब डॉ.आंम्बेडकर ने अपने भाषण में कहा -
"मिलिंद एक ग्रीक (यूनानी) राजा था, उसे अपनी विद्वता पर बहुत गर्व था,उनकी यह मान्यता थी कि ग्रीक जैसे विद्वान दुनिया भर में कहीं नहीं मिलेंगे,उसने दुनिया को चुनौती दी थी,अंत में उसे लगने लगा कि किसी बौद्ध भिक्षु से शास्त्रार्थ करना चाहिए, लेकिन कोई भी उससे शास्त्रार्थ करने को तैयार नहीं था,राजा मिलिंद (मिनांडर) सामान्य मनुष्य था। वह कोई ज्ञानवान या बहुत बड़ा विद्वान व्यक्ति नहीं था। उसे केवल राज्य का कामकाज चलाना ही उसे आता था, परन्तु कोई भी उसके साथ शास्त्रार्थ करने को तैयार नहीं होता था। जब उसे पता चला कि बौद्ध भिक्खु अत्याधिक विद्वान होते हैं और वे किसी भी शास्त्रार्थ द्वारा किसी भी व्यक्ति से शास्त्रार्थ कर उसे हरा देते हैं तब अत्याधिक प्रयास करने के बाद भिक्खु 'नागसेन' तैयार हुए । राजा मिलिंद की चुनौती को उसे स्वीकार कर लेना चाहिए , ऐसा उसने निश्चय किया । फिर चाहे शास्त्रार्थ में उसकी जीत हो या हार भिक्खु नागसेन नें आयु के सातवें साल में उसने अपने मां -बाप का घर त्याग दिया था,ऐसे नागसेन ने भिक्खुओं के आग्रह को स्वीकार किया और फिर इस प्रकार राजा मिलिंद और भिक्खु नागसेन के बीच शास्त्रार्थ हुआ और उसमें राजा मिलिंद की पराजय हुई। उस शास्त्रार्थ पर एक पुस्तक भी उपलब्ध है,उस पुस्तक को पालि भाषा में ' मिलिंद पय्ह ' कहा जाता है। इस पुस्तक का मराठी और हिंदी में अनुवाद ‘ मिलिंद प्रश्न ' के नाम से उपलब्ध है । यह पुस्तक विद्यार्थिओं और शिक्षकों को अवश्य पढ़नी चाहिए , ऐसी मेरी इच्छा है,इस पुस्तक में शिक्षक में कौन से गुण होने चाहिए यह भी बताया गया है। इसलिए मैंने और सोसायटी ने मिलकर इस कालेज का नाम ‘ मिलिंद कालेज ' रखा है तथा यह जिस परिसर में है उस जगह का नाम ' नागसेन वन ' रखा है।
राजा मिलिंद हार जाने के पश्चात बौद्ध बन गया था, इसलिए मैंने इस कालेज को जो यह नाम दिया है । यह Intellectual -truth का अच्छा उदाहरण हैंं । जिसमें मिलिंद राजा ने स्वयं को विद्यार्थी घोषित किया और भिक्खु नागसेन को गुरु की पदवी दी ।
यह अपने आप में एक मिसाल है ,ऐसी मेरी राय है, किसी शिक्षा संस्थान को किसी उद्योगपति ने पैसे दिए ,इसी कारण उनके नाम पर संस्था का नाम रखना बहुत अनुचित है ,बौद्ध धर्म से संबंधित ‘मिलिंद ' नाम इस कालेज को देने का एक दूसरा कारण भी है कि ज्ञान अन्न के समान है ,वह सभी मनुष्य जाति के लिए आवश्यक है । प्रत्येक को उसका लाभ मिलना चाहिए ,यह उदार विचार सबसे पहले यदि किसी ने उद्घोषित किया था, तो वे तथागत बुद्ध ही थे। जिन असंख्य लोगों को सहस्त्र वर्षों तक अज्ञान में दबाकर रखा था ,उन्हें ज्ञानवान बनाते समय तथागत बुद्ध का या उनके शिष्यों के नाम की याद आना स्वाभाविक ही है, बम्बई के सिद्धार्थ कालेज में 2900 तथा इस मिलिन्द कॉलेज में 600 विद्यार्थी पढ़ रहे हैं ,मुझे इस कालेज का बहुत बड़ा बोझ सहना पड़ा है पहले केवल ब्राह्मण जाति ही विद्याध्ययन करती थी, हमारे लिए विद्या सीखने पर प्रतिबंध था, इसलिए लिखना - पढ़ना नहीं सीख पाए। हमें भी विद्याध्ययन करने की इच्छा थी, लेकिन ब्राह्मणों ने हमें विद्याध्ययन करने नहीं दिया था,लेकिन तथागत बुद्ध ने यह परंपरा तोड़ दी थी।
एक बार तथागत बुद्ध से लोहित ब्राहाण ने प्रश्न किया था कि " तुम सभी को ज्ञान क्यों सिखाते हो ? ” इस पर बुद्ध ने कहा- कि जिस तरह मनुष्य को अन्न की जरूरत है , उसी तरह सभी को ज्ञान की जरूरत है ।”
तथागत बुद्ध ने यह विचार पृथ्वी पर सबसे पहले शुरू किया था( तालियां ) विद्या ( ज्ञान ) यह तलवार की तरह है यह दुधारू होती है,उससे दुष्ट लोगों का संहार किया जा सकता है तथा दुष्ट लोगों से अपनी रक्षा भी की जाती थी - स्वदेशे पूज्यते राजा ,विद्वान सर्वत्र पूज्यते। आप सभी यहां पर विद्याध्ययन करने आए हैं ,लेकिन मेरी राय यह है कि केवल विद्या ही पवित्र नहीं हो सकती,विद्या के साथ -साथ तथागत बुद्ध ने प्रज्ञा भी बताई है ,प्रज्ञा का अर्थ है समझदारी शील का अर्थ है सदाचारपूर्ण आचरण ,करुणा का अर्थ है , तभी मानव जाति से प्रेमभाव और मैत्री का अर्थ है ,संपूर्ण प्राणी मात्र के प्रति अपनत्व की भावना रखनी चाहिए,ये चार पारमिताएं प्रत्येक मनुष्य में होनी चाहिए ,यदि विद्या के साथ मनुष्य में करुणा नहीं है ,तब वह मनुष्य कसाई के समान होता है , ऐसा मैं मानता हूं ,करुणा का अर्थ मनुष्य - मनुष्य का आपस में प्रेम संबंध होना चाहिए।इससे भी आगे मनुष्य को जाना चाहिए तथा मैत्री संपादित करनी चाहिए,यह विचारधारा यदि किसी ने सबसे पहले दुनिया के सामने रखी थी , तो वे केवल तथागत बुद्ध ही थे ,मैं अपने जैसा विद्वान इस भारत देश में देखना चाहता हूँ।
डा.अम्बेडकर के प्रेरक भाषण
भाग-1-प्रष्ठ-190-191-192.
डा.बाबासाहेब आंबेडकर
खण्ड-18-भाग-3-प्रष्ठ-456.